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मानव सिंह राणा 'सुओम'

Abstract

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मानव सिंह राणा 'सुओम'

Abstract

मैं चल रहा हूँ।

मैं चल रहा हूँ।

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दीपक जलाते, मैं चल रहा हूँ।

जीवन बनाते, मैं चल रहा हूँ।


हवाओ ने तेवर बदले कई बार।

दीपक बचाते, मैं चल रहा हूँ।


बुरी नजरों के वार है फिर भी।

नजरें बचाते, मैं चल रहा हूँ।


मन काला बहुत है जानकर भी।

pan style="font-size: 18px;">नजारे दिखाते, मैं चल रहा हूँ।


उम्मीद की एक नई राह पाकर।

तराने जो गाते , मैं चल रहा हूँ।


लक्ष्य भेदना है मुझको जरूरी।

छाती चौड़ाते , मैं चल रहा हूँ।


जीवन में 'सुओम' बहाने नहीं।

अतीत बनाते , मैं चल रहा हूँ।


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