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Mahaveer Dhaliya

Abstract

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Mahaveer Dhaliya

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प्रकृति का रंग

प्रकृति का रंग

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भोर ने नहीं बाँधा हे,अभी

रवि को लाल रंग का सेहरा,

भानु भी धुंध की ओढ़ चादर,

मानो निश्चल सो रहा हे गहरा।


छिप रही हे, किरण धेनुएँ

मानो धुंध दे रहीं हो पहरा

धरा का दामन नम हो गया,

जब शब रोने लगी छुपाकर चेहरा।


चुप हो जा पगली,"उषा ने कहा आकर"

समभल, देख जरा पल्लू उठाकर,

देख वह आ गया,प्रियतम-सवेरा,

उठकर चिर आलिंगन प्रिय का किया।


फिर पल में ही फेल गया उजियारा,

वसुंधरा बजाने लगी झालर-नगारा,

सिंधु भी मानो लग रहा नीलगगन सा प्यारा,

दिनकर की किरणें भर रहीं, प्रकृति-रंग न्यारा।


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