STORYMIRROR

Mahaveer Dhaliya

Abstract

4  

Mahaveer Dhaliya

Abstract

प्रकृति का रंग

प्रकृति का रंग

1 min
750

भोर ने नहीं बाँधा हे,अभी

रवि को लाल रंग का सेहरा,

भानु भी धुंध की ओढ़ चादर,

मानो निश्चल सो रहा हे गहरा।


छिप रही हे, किरण धेनुएँ

मानो धुंध दे रहीं हो पहरा

धरा का दामन नम हो गया,

जब शब रोने लगी छुपाकर चेहरा।


चुप हो जा पगली,"उषा ने कहा आकर"

समभल, देख जरा पल्लू उठाकर,

देख वह आ गया,प्रियतम-सवेरा,

उठकर चिर आलिंगन प्रिय का किया।


फिर पल में ही फेल गया उजियारा,

वसुंधरा बजाने लगी झालर-नगारा,

सिंधु भी मानो लग रहा नीलगगन सा प्यारा,

दिनकर की किरणें भर रहीं, प्रकृति-रंग न्यारा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract