गाय की व्यथा (राजस्थानी कविता)
गाय की व्यथा (राजस्थानी कविता)
खाबाँँ न चारों कोने,
रहबाँ न उसारों कोने,
धरती बँटगी मिनखां म्ह,
बबता पड़गी गायाँ म्ह।
घर-घर जाकर दाणों माँगह,
भगत लुगायां ताणों मारह,
जा धणीं रा खेंता म्ह,
बबता पड़गी गायाँ म्ह।
भूखा रहबाँ सू दूध घटग्यो,
घर म्ह रखबाँ न धणीं नटग्यो,
सगली सड़क्याँ भरगी गायाँ सूँ,
रोज दुर्घटना घटतीं गों मायाँ सूँ।
गौशाला म्ह भी ठौर घटगी,
लोग-लुगायां री आत्मा मरगी,
यान्ह काटों सराँ बजाराँ ,
ये मवेशी है,बेकार आवाराँ ।
