STORYMIRROR

Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

4  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

अपमान का घाव

अपमान का घाव

1 min
388

अपमान का घाव कभी भरता नहीं है

आंसुओ का दाग कभी धुलता नहीं है


जिसके दिल मे अपयश का तीर लगा हो,

उसे सोने का बिछोना भी सुहाता नहीं है


अपमान से बड़ा कोई विष का घूंट नहीं है

इससे बड़ा जहर साँप का भी होता नहीं है


अपमान तो एक ऐसे विषैले पौधे का बीज है,

जिसका बीज सांस निकलने पर भी मरता नहीं है


अपमान,को मान में तभी बदला जा सकेगा

अपमान का भी उचित अपमान हो सकेगा


सामने वाले से बदले की भावना का त्याग कर दे,

फिऱ देख वो तुझे देखकर शर्मिंदा होता कि नहींं है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract