अपमान का घाव
अपमान का घाव
अपमान का घाव कभी भरता नहीं है
आंसुओ का दाग कभी धुलता नहीं है
जिसके दिल मे अपयश का तीर लगा हो,
उसे सोने का बिछोना भी सुहाता नहीं है
अपमान से बड़ा कोई विष का घूंट नहीं है
इससे बड़ा जहर साँप का भी होता नहीं है
अपमान तो एक ऐसे विषैले पौधे का बीज है,
जिसका बीज सांस निकलने पर भी मरता नहीं है
अपमान,को मान में तभी बदला जा सकेगा
अपमान का भी उचित अपमान हो सकेगा
सामने वाले से बदले की भावना का त्याग कर दे,
फिऱ देख वो तुझे देखकर शर्मिंदा होता कि नहींं है।
