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Ajit Kumar Raut

Abstract

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Ajit Kumar Raut

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कर्तव्यनिष्ठ

कर्तव्यनिष्ठ

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मनुष्य जीवन दुर्लभ है,

         कर्तव्यों की भर मार है।


कर्तव्य है जननी सेवा,

          हो मातृभूमि की सेवा।


कर्तव्य पथ में चलना,

        गुरुजन को भक्ति करना।


सम भाव मंत्र रखनी है,  

         सबों को आदर करनी है।

               

देव भक्ति कर्तव्य है,    

         संस्कृति बचाना धर्म है।


कुप्रथा मिटाना हमें है,

         स्वावलंबी राष्ट्र बनना है।


सत्यपथ चुनना है हमें, 

         धर्म पथ में चलना हमें।


सनातनी है राष्ट्र हमारे,

        ज्ञान गीता कर्तव्य प्यारे।


आत्मनिर्भर बनना है,

         आत्मविश्वास जगाना है।


नये भारत के गुंजन है,

         अमृत काल में प्रवेश है।


निर्णय हमें करना है,

        अच्छी सरकार बनाना है।


विश्वगुरु होगे हम,

        निर्णय सही लेंगे ही हम।


सेवा हो निस्वार्थ भाव,

       सेवा हो भक्ति त्याग भाव।


मातृभाषा प्रेम करनी है,

      आगे जननी भाषा रखनी है।


राष्ट्र हो सर्वश्रेष्ठ प्राण में,

         मर मिटना है सुरक्षा में।


गद्दारों को त्यागना हमें

         देशभक्तों अपनाना हमें।


कर्मपथ हो राष्ट्र कार्यों में,

         धर्म पथ जनकल्याण में।


भक्ति भाव प्रभु चरण,

         प्रेम भाव हो मातृ चरण।


पितृ भक्ति हो जीवन में,

        दया भाव हो हर जीवों में।


नारी सम्मान जीवन है,

        अतिथि सेवा गृह धर्म है।


कमजोरों को है आगे लाना 

       मुख्य धारा में है जोड़ना ।


एकत्रित करें जन जन,

        कर्तव्य ज्ञान हो जीवन।



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