नहीं है गति तुम बिनु प्रभु
नहीं है गति तुम बिनु प्रभु
हे अनादि परमब्रह्म मुरारी
तुम बिनु कौन है ईश्वर इस जग में मेरा
पद पद पर तेरे अनुभव
रहते हो पार्श्व में हरि
हूँ निर्भय नहीं है डर
क्यों लग रहा है फिर भय
आपके सृष्टि में मनुष्य यहां
श्रेष्ठ समझता , कर रहा हैं अनिष्ट
मनुष्यों में हैं साधु संत भी
दुष्ट कहां मान रहा है कुटुम्ब उन्हें अपना
कर रहा है कुकर्म
होगा अवश्य पापी विनाश, विश्वास है मेरा
कर देगें इसके पूर्व वे बर्बाद
हे परमब्रह्म मुरारी !!
डर भय नहीं रहेगा यहां
आतकं अराजकता चलेगा सब जगह
देखो प्रभु दिव्य नेत्रों से
तपस्वी मरता है, ताण्डव भयंकर दुष्टों का
होता है चिंता
दूर करो
दुर्वल का न हो प्रताडऩा,विनाश
है परमब्रह्म मुरारी !!
