बाँध लेना तू सागर को
बाँध लेना तू सागर को
चाहत का द्वार आज तू फिर लीप लेना,
अपने प्रिय का दिल फिर तू जीत लेना।
क्या जाने वो क्या समझा, क्या जाना,
अपने हिये पर बस तुम तो प्रीत लेना।
तेरा दिल क्या सहता है उसे मालूम नहीं,
तू गुमनामी से उसकी शोहरत जीत लेना।
सदियों झेल रहे अपने हिस्से का सुख दुःख,
तू पीड़ा के सागर में, सीप सी प्रीत लेना।
ये समय की धरा बस बहती ही जाएगी,
कुछ पल चुरा, बस समय को जीत लेना।
देखो उतर रही है धूप अब मुंडेरों से,
देहरी पर बस अपने एक दिया सींच लेना।
अपने सपनों की बस्ती में करके विचरण,
श्याम सरीखा छलिया, तू कोई मीत लेना।
मत रखना तू रीता, आस्था के मटके को,
खुद भरना, खुद देखना, और बस रीत लेना।
बाँध लेना तू सागर को, अपने आँचल में,
रीतियों के गरम थपेड़ों को, तू बस जीत लेना।