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Manuj Keshari

Abstract

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Manuj Keshari

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परिवर्तन की राह

परिवर्तन की राह

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जीवन वही जहाँ हलचल है 

जहाँ तिमिर से समर अटल है 

जहाँ मनुज जब शस्त्र उठाता 

शास्त्र धर्म को भूल न जाता 

सबसे कठिन वही जीवन है 

जहाँ मनुज का निज से रण है 


जीवन की अनगिनत राहों से 

निज की अति निकृष्ट चाहों से 

थका हुआ सा मनुज अकेला 

पीछे छूटा, उसका जग-मेला 

निज मीत के चिर अभाव में 

घोर निराशा के प्रभाव में 

वीरोचित इतिहास लगे अजाना 

भूल गया नर शास्त्र खजाना  


जीवन में निज से रण चलता 

कुरुक्षेत्र सब नर में बसता 

मोहित अर्जुन-सम सब रहते 

कृष्ण मगर कितनों को मिलता?

कर्मयोग की पावन पावक,

मनुज हृदय को छू न पाई 

बस इससे ही वीर मनुज के,

अधरों पर मुस्कान न छाई 


प्रतिदिन संघर्षों में रत सा 

किन्तु स्वयं से विमुख-विरत सा 

जीवन चक्र समझ ना पाता 

हर संध्या वह घर में आता 

जीवन से किञ्चित निराश वह 

तोड़ न पाता मोह-पाश वह 

तिमिर देख घर के भीतर का 

दीपक नित्य जलाता घर का 


आज तिमिर कुछ अधिक घना था 

तूफ़ान का ख़तरा भी बना था 

दीपक मगर स्वयं की लय में 

बिना किसी तूफ़ान के भय के

घने तिमिर को रौशन करता 

मानव-मन उम्मीद से भरता 


बाहर सहसा तूफ़ान गरजा

साथ में उसके बादल बरसा

दोनों दीपक के चिर-वैरी

घोर तिमिर के सजग से प्रहरी

संकल्प लिया दोनों ने मन में 

मानव-मन है जिस उलझन में

उसे वहीं पर रहना होगा

बीच भँवर में बहना होगा

नहीं सहारा उसे मिलेगा

नहीं पंक में कमल खिलेगा

दीपक का मद्धम प्रकाश ही,

मानव-मन का एक सहारा

अंधकार-मय बने मनुज मन,

आज यही संकल्प हमारा


अनभिज्ञ वैरियों के इस प्रण से

दीपक लगा हुआ तन-मन से

निज के कर्तव्यों में रत-सा

शेष जगत से विमुख-विरत सा

जीवन का व्रत पाल रहा था

तम से नर का ढाल रहा था

नहीं विजय की अभिलाषा थी

शैली उसकी, कर्मयोग की

परिभाषा थी

मृत्यु का आतंक नहीं था

जीवन उसका पंक नहीं था

जीवंत नदी-सम जीवन-धारा

जीवन-ध्येय था, एक ध्रुव-तारा


(तूफ़ान-बादल का गृह प्रवेश)

घर में घुसे तिमिर के प्रहरी

दीपक से दुश्मनी थी गहरी

दीपक को बोले मुस्काकर

नहीं धरा का तू है दिवाकर

नहीं तिमिर तुझसे हारेगा

निज सीमा तू पहचानेगा

दयनीय बड़ा, तू विवश खड़ा है

जाने किस मिट्टी में गढ़ा है 

जाने क्या जीवन का ध्येय है 

नहीं सूर्य-सम तू श्रद्धेय है 

व्यर्थ दीप है, तेरा जीवन 

नहीं पूजता, तुझे मनुज-मन 


सूर्य केंद्र, मानव-श्रद्धा का 

वही अमर, अजेय योद्धा-सा 

चंद पलों का जीवन तेरा 

नहीं धरा पर करे सवेरा 

सूर्य श्रेय उसका है पाता 

तुझे नहीं कहीं पूजा जाता 


(दीपकोवाच)

सत्य वचन हैं, प्रहरी तेरे

नहीं सूर्य-सम कर्म हैं मेरे 

नहीं धरा का तिमिर मैं हरता 

नहीं सूर्य से तुलना करता 

नहीं सूर्य का मैं विकल्प हूँ 

मात्र आप में, एक संकल्प हूँ 

जब तक बहती जीवन धारा 

संकल्प है मेरा, एक ध्रुव तारा 


सूर्य अस्त होता जब प्रतिदिन 

धरा निराश-सी लगे प्रकाश बिन 

मनुज-हृदय अकुलाता है तब,

नहीं सहारा पाता वह जब 

घोर तिमिर के चंद पलों को,

रौशन करना ध्येय है मेरा,

महादेव-सम, तम वसुधा का,

चिर काल से पेय है मेरा


निज सीमा अज्ञात नहीं है 

बड़ी विशाल यह धन्य मही है 

मात्र एक मेरे निज प्रण से,

तिमिर परास्त नहीं हो सकता 

किन्तु दीप की निज सीमा है,

लाँघ उसे मैं भी नहीं सकता 


नहीं दूसरे दीप से तुलना 

निज आदर्शों पर है चलना 

जब तक प्राण हैं इस जीवन में 

मुझे मात्र तिमिर से लड़ना 

हार-जीत के परे यह जीवन 

कर्मयोग से प्रेरित निज मन 

प्रभु प्रदत्त सब कर्म हमारे 

हमें प्राण से भी हैं प्यारे 

कर्तव्यों में तन-मन अर्पित 

नहीं तुला से जीवन सीमित 

सोच संकुचित नहीं हमारी 

पूर्ण धरा है, हमको प्यारी 

प्रभु-रचित सुन्दर सृष्टि में,

हम सबका अपना महत्त्व है 

निज महत्त्व को पूर्ण करें हम,

इस जीवन का यही तत्त्व है 


किन्तु भूल मत, तिमिर के प्रहरी 

दीपावली की महिमा गहरी 

बड़ा पुण्य यह पर्व निराला पूर्ण

धरा पर करे उजियाला 

कोटि दीप हैं, उस दिन जलते 

पूर्ण धरा को रौशन करते 

तिमिर परास्त होता है उस दिन 

जिस दिन दीप हैं जलते अनगिन 


(मानवोवाच)

परिवर्तन की यही राह है 

परिवर्तन की जिसे चाह है 

उसे दीप-सम जलना होगा 

घोर तिमिर से लड़ना होगा 

हम बदलेंगे, युग बदलेगा 

हम सुधरेंगे, युग सुधरेगा 

इसे करेंगे आत्मसात, जब नर 

स्वर्ग तभी भू पर उतरेगा 


जीवन मात्र है एक तपस्या 

भले आन पड़े कौन समस्या 

मानव का आदर्श है जलना 

सूरज नहीं, तो दीपक बनना 

नहीं प्रभु की अगर धरा को,

निज ब्रह्माण्ड प्रकाशित रखना 


 








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