निर्भीकता जीवन का सार
निर्भीकता जीवन का सार
गीता के ज्ञान से पूरित तू
फिर क्यों भय से है शंकित तू
तू नहीं मात्र एक देह-कुंज
तू महा शक्ति का तेज पुंज
तू परम-ईश का एक अंश
तेरा उसका है एक वंश
तू आप स्वयं चिंगारी है
फिर क्यों भय तुझ पर भारी है?
भयभीत कभी नूतनता से,
या फिर कभी विफलता से,
जीवन के प्रत्येक चरण में
तू मोहित रहा सफलता से
इस मोह-भय की तिमिर निशा में,
दिखता नहीं तुझे निज मूल
निर्भीकता जीवन का सार,
कैसे गया तू इसको भूल?
निर्भीकता जीवन का मंत्र,
इसके बिना मनुज परतंत्र
कभी स्वयं की पूर्व विजय से,
कभी गैर ईप्सा के भय से,
पर जीवन का ध्येय है मुक्ति,
नहीं मात्र पर के बंधन से,
लक्ष्य मनुज-जीवन का मुक्ति,
वैरी-मन की हर अड़चन से
