मणि मुक्ता मंत्र व्यर्थ उर गहरे गड़ी मेख। मणि मुक्ता मंत्र व्यर्थ उर गहरे गड़ी मेख।
तुम्हें नवगीत सुनाती हूँ बढ़ते जाओ, बढ़ते जाओ जीवन पथ पर आगे जाओ कभी ना रुकना तुम्हें नवगीत सुनाती हूँ बढ़ते जाओ, बढ़ते जाओ जीवन पथ पर आगे जाओ कभी ना रुकना
लगा कर दौड़ वक्त के साथ वक्त से फिर हाथ मिलाओ। लगा कर दौड़ वक्त के साथ वक्त से फिर हाथ मिलाओ।
वो खींच डोर हमें जकड़ लेता, किसी कठपुतली की भांति तब मसल देता। वो खींच डोर हमें जकड़ लेता, किसी कठपुतली की भांति तब मसल देता।
खामोशियों से ना कतरा जानेमन, जला कर दीया कर दे रोशन चमन, खामोशियों से ना कतरा जानेमन, जला कर दीया कर दे रोशन चमन,
यह रचना दोहा छंद पर आधारित है जो, हिन्दी के गौरव को रेखांकित करती है । यह रचना दोहा छंद पर आधारित है जो, हिन्दी के गौरव को रेखांकित करती है ।