अच्युतं केशवं
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क्या कहती जरा देख करतल की कुटिल रेख।
मणि मुक्ता मंत्र व्यर्थ उर गहरे गड़ी मेख।
तटिनी के तट डूबा गहरे में पार गया।
अरि को तो जीत लिया निज से ही हार गया।
मन आस तारा
सहज तुमने अपन...
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धूम्रपान कर ब...
छिपा हृदय निज...
उर सहयोगी भाव
भट्टी सी धरती...
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