भट्टी सी धरती तपी
भट्टी सी धरती तपी
भट्टी सी धरती तपी, दिनभर बरसी आग
झोपड़पट्टी रातभर, गाती दीपक राग
ऐसी वालों के लिए, क्या फागुन क्या जेठ
दीन दरिद्री बन रहे, सूरज का आखेट
हत्था के नल लापता, पूँजी का छ्लछ्न्द.
गंगा जी के देश में, पानी बोतल बंद।
भट्टी सी धरती तपी, दिनभर बरसी आग
झोपड़पट्टी रातभर, गाती दीपक राग
ऐसी वालों के लिए, क्या फागुन क्या जेठ
दीन दरिद्री बन रहे, सूरज का आखेट
हत्था के नल लापता, पूँजी का छ्लछ्न्द.
गंगा जी के देश में, पानी बोतल बंद।