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ritesh deo

Abstract

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ritesh deo

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नारी की पीड़ा मेरी दृष्टि से

नारी की पीड़ा मेरी दृष्टि से

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कृप्या अंत तक पढ़े !


एक नारी की पीढ़ा ! !

जिसे मै शब्दो के माध्यम से

आप सभी के समक्ष रख रहा हूँ ! !

प्रतिदिन की घटना !

___

"""ब्रा के स्ट्रैप देखकर तुम्हारी


नसे क्यों तन जाती हैं...'भाई' ?"""

"


'अरे! तुमने ब्रा ऐसे ही खुले में

सूखने को डाल दी ? तौलियों से ढ़को इसे।' ऐसा एक माँ अपने

13 - 14 साल की बेटी को कहती है।

'तुम्हारी ब्रा का स्ट्रैप दिख रहा है'

कहते हुए एक लड़की अपने सहेली के कुर्ते को आगे खींचकर

ब्रा का स्ट्रैप ढ़क देती है।

'सुनो! किसी को बताना मत कि तुम्हें पीरियड्स शुरू हो गये हैं।'

'ढ़ंग से दुपट्टा लो इसे गले में क्यूँ

लपेट रखा है ?'


'लड़की की फोटो साड़ी में भेजिएगा।'

'हमें अपने बेटे के लिए सुशील, गोरी, खूबसूरत, पढ़ी-लिखी और

घरेलू लड़की चाहिए।'

'नकद कितना देंगे ? बारातियों के

स्वागत में कोई कमी नहीं होनी चाहिए।'


'दिन भर घर में रहती हो।

काम क्या करती हो तुम ?

बाहर जाकर कमाना पड़े

तो पता चले।'


'मैं नौकरी कर रहा हूँ ना,

तुम्हें बाहर खटने की क्या जरूरत ?

अच्छा चलो ठीक है, घर में

ब्यूटी पार्लर खोल लेना।'


'बाहर काम करने का यह मतलब तो नहीं

कि तुम घर की ज़िम्मेदारियाँ भूल जाओ।

औरत होने का

मतलब समझती हो तुम ?'


'तुम थकी हुई हो तो मैं क्या करूँ ?

मैं सेक्स नहीं करूँगा क्या ?'

'कैसी बीवी हो तुम ? अपने पति

को खुश नहीं कर पा रही हो।'


'तुम्हे ब्लीडिंग क्यों नहीं हुई ?

वर्जिन नहीं हो तुम ?'

'तुम बिस्तर में इतनी कंफर्टेबल कैसे हो ?

इससे पहले कितनों के साथ सोई हो ?'


'तुम क्यों प्रपोज करोगी उसे ?

लड़का है उसे फर्स्ट मूव लेने दो।

तुम पहल करोगी तो तुम्हारी

इमेज़ खराब होगी।'


'पहले जल्दी शादी हो जाती थी,

इसलिए रेप नहीं होते थे।'

'लड़के हैं, गलती हो जाती है।'


'फेमिनिज़्म के नाम पर अश्लीलता फैला रखी है।

दस लोगों के साथ सेक्स करना

और बिकनी पहनना ही महिला सशक्तिकरण है क्या ?'


'मेट्रो में अलग कोच मिल तो गया भई!

अब कितना सशक्तीकरण चाहिए ?'


'इतनी रात को बॉयफ्रेंड के साथ

घूमेगी तो रेप नहीं होगा ?'

'इतनी छोटी ड्रेस पहनेगी तो रेप

नहीं होगा ?'


'इतनी फैशनेबल और माडर्न है,

समझ ही गए होंगे कैसी लड़की है।'


'नहीं-नहीं, लड़की की तो शादी करनी है।

हाँ, पढ़ाई में अच्छी है तो क्या करें, शादी के लिए पैसे जुटाना ज्यादा जरूरी है।

बेटे को बाहर भेजेंगे, थोड़ा शैतान है लेकिन सुधर जाएगा।'


लंबी लिस्ट हो गई ना... ?

इरिटेट हो रहें हैं आप... ?

सच कहूँ तो मैं भी इरिटेट हो चुकी हूँ

यह सुनकर कि मैं 'देश की बेटी,

घर की इज़्जत, माँ और देवी हूँ।'


नहीं हूँ मैं ये सब। मैं इंसान हूँ , आपकी तरह।

मेरे शरीर के कुछ अंग आपसे अलग हैं

इसलिए मैं औरत हूँ बस....इससे ज्यादा और कुछ नहीं।


सैनिटरी नैपकिन देखकर शर्म आती है आपको ? इतने शर्मीले होते आप तो इतने यौन हमले क्यों होतें हम पर ?


ओह! ब्रा और पैंटी देखकर भी शर्मा जातें हैं आप या इन्हें देखकर आपकी सेक्शुअल डिज़ायर्स जग जाती हैं, आप बेकाबू हो जातें हैं और रेप कर देतें हैं।


कोई ऐसे अंग प्रदर्शन करेगा तो आपका बेकाबू होना लाज़मी है। हैं ना ? यह बात और है कि आपको बनियान और लुंगी मे घूमते देख महिलायें बेकाबू नहीं होती।


अच्छा, मेरी टांगे देखकर आप बेकाबू हो गए।

नन्हें-नन्हें पैर देखकर भी बेकाबू हो गए।

उस बुजुर्ग महिला के लड़खड़ाकर चलते हुए पैरो ने भी आपको बेकाबू कर दिया।

अब इसमें भला आपकी क्या गलती!


लेकिन आप तो कह रहे थे कि स्त्री की कामेच्छा किसी से तृप्त ही नहीं हो सकती ? वैसे कामेच्छा होने में और अपनी कामेच्छा किसी पर जबरन थोपने में अंतर तो समझते होंगे आप ?


महिलाओं द्वारा आज़ादी की मांग को लेकर काफी 'चिंतित' नज़र आ रहे हैं। उन्हें लगता होगा कि महिलाएं 'स्वतंत्रता' और 'स्वच्छंदता' में अंतर नहीं कर पा रहीं हैं।


उन्हें डर है कि महिलाएं पुरूष बननें की कोशिश कर रहीं हैं और इससे परिवार टूट रहें हैं, 'भारतीय अस्मिता' नष्ट हो रही है।


कोई मुझे किडनैप करके ले जाए और फिर मेंरा पति यह जांच करे कि कहीं मैं 'अपवित्र' तो नहीं हो गयी और फिर वही पति मुझे प्रेग्नेंसी की हालत में मुझे जंगल में छोड़ आए, फिर भी मैं उसे पूजती रहूँ।


या फिर मैं पाँच पतियों कि बीवी बनूं। एक-एक साल तक उनके साथ रहूँ और फिर हर साल अपनी वर्जिनिटी 'रिन्यू' कराती रहूँ ताकि मेरे पति खुश रहें।

यही आदर्श सिखाना चाहतें हैं आप हमें... ?


चलिए अब कपड़ो की बात करतें हैं। आप एक स्टैंडर्ड 'एंटी रेप ड्रेस' तय कर दीजिए लेकिन आपको सुनिश्चित करना होगा कि फिर हम पर यौन हमले नहीं होंगे।

बुरा लग रहा होगा आपको ?


मैं पुरूषों को जेनरलाइज़ कर रहीं हूँ।

अच्छा हाँ...हम तो भूल ही गयें! हर पुरूष एक जैसा नहीं होता। बिल्कुल ठीक कहा आपने।

जब आप सब एक जैसे नहीं हैं तो हमें एक ढ़ांचे में ढ़ालने की कोशिश क्यों करतें हैं ?


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