ज़िंदगी बीत गई दूरियाँ मिटाने
ज़िंदगी बीत गई दूरियाँ मिटाने
एक दिन कभी हुआ था नई सुबह लेकर
कोई मेहरबान को आया था साथ लेकर।
ना चाल थी सही ना रूप था अलग
मिला था मुझे वो छलावा बनकर।
दो पल साथ गुज़रे तो लम्हे थम गए
दो लफ़्ज़ मुँह से निकले तो हम जम गए।
जो रात भर सोचा उसको तो लगा
दिन निकल आया हो अँधेरा बनकर।
बस बातें थी और कुछ नहीं था
सोचने की रातें थी और कुछ नहीं था।
जब जब मिले तो मिलने को मन करता गया
कोई साथ में आया रहबरा बनकर।
हम तो ख़ुद हालात से मजबूर थे
जो कभी हमारे साथ हुए वो भी दूर थे।
जो मिला तो लगा ऐसा हमें की
अजनबी मिल गया राज़दान बनकर।
वो दिन भर का साथ था
वो हर लम्हा दीदार था।
कुछ भी ना था उसमें मुझ जैसा
फिर भी वो हमारा हुआ हमसा बनकर।
उसे परख थी मेरे हालात की
उसे समझ थी सारे जज़्बातों की।
जो अपने थे वो भी ना समझ सके जो
वो समझ बैठा था अपना सा बनकर।
फिर एक दिन कुछ यूँ हुआ
उसकी धड़कनो को हमारे जज़्बातों ने यूँ छुआ।
पल में हर रास्ता दिखने लगा
वो मेरे रास्तों पे छा गया निगहबन बनकर।
जो हालात थे कुछ बदल से गए
हम उसमें और वो हममें घुल से गए।
ना सोचा था इतने एक हो जाएँगे
वो ख़ून में बहने लगा रवानी बनकर।
कुछ यादें बनती गयी बीते पलों की
कुछ बातें बनती गयी पुराने कलों की।
ना भुलाई जा सकेंगी वो दास्तानें
वो फ़सानो में छा गया फ़साना बनकर।
एक ख़ुशबू थी मेरे और उसके नाम की
हर और कहानी थी मेरे उसके कलाम की।
जहाँ से निकला मैं ख़ुशबू उड़ता गया
वो हवाओं मैं मिल गया ख़ुश्बू मेरी बनकर।
एक आदत सी हो पड़ी उसकी ज़िंदगी को
एक चाहत सी हो गई इस दिल्लागी को
वो आगे मेरे संग बड़ता गया
कभी आग तो कभी पानी बनकर।
कुछ भूल भी गया इस नजम में
तो बुरा मान ना जाना
सालों को पेश कर दिया है मैंने
लफ़्ज़ों का क़ाफ़िला बनकर।
फिर एक दिन कुछ यूँ हो गया
मैं दूर चला गया मुसाफ़िर की तरह।
पर लगा जैसे कि वो दूर रहकर भी
साथ मेरे हो गया एक हमसफ़र बनकर।
मुझे आदत ना थी उसके बिन मुस्कुराने की
उसको भी थी असत मेरे उसको हसाने की।
ये रेत का समंदर मुझे निगल गया
की मैं एक अफ़साना बन गया बहाना बनकर।
ना कोई हमसफ़र बचा ना कोई कारवाँ बचा
ना निगहबन ना फ़साना रहा।
वो आँखों में आया जब अँधेरा हुआ
आँखों में रह गया एक सपना बनकर।
क़िस्से कई हुए कहानियाँ कई बनी
ना चाहकर भी निशानियाँ कई बनी।
जो मिला वो कभी मंज़ूर ना था
वो दूर हो गया किसी और का मेहमान बनकर।
हुआ था जो उसकी कोई उम्मीद ना थी
लगा हुआ था दिल उसको निभाने में।
एक पल गुज़र गया सालों की तरह और
ज़िंदगी बीत गई दूरियाँ मिटाने में।
ज़िंदगी बीत गई दूरियाँ मिटाने में।
