हवाओं को ही फानूस बनाएं
हवाओं को ही फानूस बनाएं
मुहल्ले में फिर से रौनक लौटाएं।
हिन्दू को ईद मुस्लिम को दीवाली बताएं।।
चलो मिलकर कुछ तो ऐसा करें अब।
किसी रोते बच्चे को हम कहानी सुनाएँ।।
निराशाओं में घोर अँधेरा है सब माना।
आओ उम्मीदों का फिर कोई जुगनू बुलाएँ।।
आँधियों के दौर निकल पड़े हैं यहाँ अब।
चलो इन तेज़ हवाओं को ही फानूस बनाएं।।
रूठे हैं सनम वो मना लेते हैं हम अब।
हम खुद रूठकर उनको क्यों सताएं।।
मज़हब की दीवारें गिराने का वक़्त है अब।
आओ मिलकर बाइबिल क़ुरान गीता उठायें।।