STORYMIRROR

Yogesh Kanava

Abstract Romance

3  

Yogesh Kanava

Abstract Romance

कजरी की झंकार

कजरी की झंकार

1 min
204

अब तो समझो सनम 

मुझ पगली को 

आकाश की बदली को 

सावन की कजली को 

क्रीड़ा है, खेल है ये 

त्योहार है व्रत है ये 

उपालम्भ है आमंत्रण है 

मन की व्यथा का चित्रण है 

आकुलता है व्याकुलता है 

भीगी भीगी सी बस्ती है 

नैनों की मस्ती है 

मिलन की आशा है

लोक की भाषा है 

पुरवाई की बयार है 

सावनी फुहार है 

अंगड़ाइयों का आकर है 

यही कजरी की झंकार है 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract