गिला करे तो किससे करे ए शमा़ यहाँ तो हर इन्सान ही पत्थर सा है। गिला करे तो किससे करे ए शमा़ यहाँ तो हर इन्सान ही पत्थर सा है।
कोई हँस रहा था बस्तियों में। कोई हँस रहा था बस्तियों में।
गिर जाती हूं मगर फिर से संभल जाती हूँ मैं। गिर जाती हूं मगर फिर से संभल जाती हूँ मैं।
आज हर तरफ गीदड़ बैठे है शेर को भी चूहे ललकार बैठे है पर में हार नही मानुगा आज हर तरफ गीदड़ बैठे है शेर को भी चूहे ललकार बैठे है पर में हार नही मानुगा
दिल से ज़्यादा तो न होगी चीज़ सस्ती एक दिन। दिल से ज़्यादा तो न होगी चीज़ सस्ती एक दिन।
मिट्टी के शहर गीतों की लहर लफ़्ज़ों की गली शायर की हुई हर बस्ती में मेरी हस्ती में है गूँज... मिट्टी के शहर गीतों की लहर लफ़्ज़ों की गली शायर की हुई हर बस्ती में मेरी ह...