STORYMIRROR

Renuka Chugh Middha

Abstract

4  

Renuka Chugh Middha

Abstract

पत्थरों का शहर

पत्थरों का शहर

1 min
375

पत्थरों के इस शहर में 

अहसास की क़ीमत कुछ भी नहीं 

ओढ़े हुऐ है लबादे सुर्ख़ रगों के 

 पर रूहों पर तो लिबास ही नहीं 


चल इस शहर इस बस्ती से दूर ए दिल 

जहाँ सिर्फ़ हम हो दूजा ना ,कोई हो 

ना हो दर्द की स्याही का आलम,

बस सकूने -दिल हो। 


क्या समझेगा वो ! 

समझेगा किया वो !

अलफा़जों के मेरे

वाक़िफ़ ही नहीं जो दर्द से मेरे।


ख़फ़ा हूँ क्यूँ ख़फ़ा हूँ मैं, 

 शख़्स वो इक जानता ही नहीं  

गिला करे तो किससे करे ए शमा़ 

यहाँ तो हर इन्सान ही पत्थर सा है। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract