दर्द नहीं, सुकूं हूँ
दर्द नहीं, सुकूं हूँ
अग्नि हूँ मैं, ज्वाला हूँ।
शीतलता की छावँ हूँ मैं
कुचलोगें गर मेरी अस्मिता
जो जलता अंगार हूँ मैं
आग़ाज़ भी हूँ, अजांम भी मैं हूँ
नाद भी हूँ, अनहाद भी मैं
साधना और अराधना भी
इबादत हूँ, इनायत भी
कारवाँ हूँइस ज़हाँ का
बरसू तो घटा हूँ, प्यार की
बहू तो हूँ चंचल सी हवा
रूकू तो, सकून हूँ, तेरे टूटे दिल का
हूँ मुकम्मल सा ख़्वाब तेरा
हुस्न हूँ वफ़ा हूँ, नज़ाकत भी हूँ
मेहन्दी - कुमकुम हूँ ओर श्रगांर भी हूँ
हसँती हूँ,बिखरती हूँ, सिमटती हूँ
नूर हूँ - तेरे तबस्सुम का
ममता बन मोम सी पिघलती हूँ
बन बहन आँगन में महकती हूँ ।
बेटी बन चहकती भी हूँ
बाँटती नहीं दर्द पी लेती हूँ
दर्द नही सुकून हूँ मै
ईश्वर की लिखी अद्धभुत रचना
मैं नारी हूँ
एक शेर कहना चाहूँगी :-
मैं अपनी इबादत खुद ही
कर लूँ तो क्या बुरा है ?
किसी फकीर से सुना था
मुझमें भी खुदा रहता है
मैं सशक्त “ नारी “ हूँ।