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Renuka Chugh Middha

Tragedy

4.0  

Renuka Chugh Middha

Tragedy

किसान

किसान

2 mins
260


मुझे लिखो , मैं कटी हुई उँगलियाँ हूँ , 

जिसे भूख ने खा लिया है .... 


ज़िन्दगी कट जाती है जिसकी , 

खुरपी और कुदाल से ...

भूखा पेट , अब तक , खेती से भरा ही नहीं । 

महज़ नाम के ही ज़मींदार है , किसान है । 

घर का खर्च भी खेती से , 

अब तक तो चला नही ..... 


जन्म मिट्टी से लेकर ,

 दफ़न हो जाते हैं थाल में, 

जवानी झुलस जाती है सारी , 

पिस कोल्हू की चक्की, 

धूप ,गर्मी ,ग़रीबी और बदहाल में । 


भूखे मरते हैं हम ....

हर बार बाढ़ और अकाल में, 

लगाते हैं रो रो कर गुहार, 

अन्धी , बहरी सरकार से , 

बेबस हो फिर लगा लेते हैं फाँसी, 

तंग हो जाये जब इस हाल में । 


देश का अन्नदाता, गहन संकट से है , जूझ रहा , 

भयानक आपदा से अब टूट रहा , 

वायरस ने है विपदा में डाला ... 

फसलें सड़ रही है सारी इनकी .... 

अब इस कोरोना के भंयकर जाल में । 


पक गई है फसलें सारी , धरती भी लहराई है , 

बेमौसम बरसात देखो , बनके तबाही आई है , 

लाकडाउन में किसान की क़िस्मत भी हो गई है लाक , 

बेबस , लाचार , बेहाल हो गया है संकट के इस कोहराम में । 


उठाया है क़र्ज़ हमने , रक्त की हर बूंद पर , 

फिर भी ये क़र्ज़ कभी हटता भी नहीं , 

घटता भी नहीं , 

घुटता है दम अब , शोषण की इस भीड़ में 

और मुश्किलों का बादल है कि छँटता भी नहीं , 

महज़ हम नाम के ही हम ज़मींदार है , 

किसान है ..... 

घर का ख़र्च तक तो , खेती से चलता ही नहीं । 



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