Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Soni Kedia

Abstract

3  

Soni Kedia

Abstract

ऐ जिन्दगी

ऐ जिन्दगी

1 min
308


ऐ जिन्दगी ! देखो

हर बार तुम्हारे ठोकरों

से बहुत कुछ सीख जाती हूँ मैं।

गिर जाती हूं मगर फिर से 

संभल जाती हूँ मैं।


बेशक कदम ठीक जाते हैं

फिर भी हौसलों से दौड़ लगाती हूँ मैं।

अक्सर ठगी जाती हूँ ..

फिर भी खुद की बेवकुफियों से 

बहुत कुछ सीख जाती हूँ मैं।


समझ न सही चालाकियों की

मुझमें फिर भी नसमझ सी

मस्त जीए जाती हूँ मैं।

जितना तू झुकाती है न

उतनी ही तो उठ जाती हूँ मैं।


झूठों की बस्ती है तो क्या हुआ ?

खुद का दामन बचाती हूँ मैं।

चलते-चलते शाम हो जाती है

तो उम्मीद के दिये लिए

हर तूफान से लड़ जाती हूँ मैं।


ऐ जिन्दगी ! देखो .

हर बार तुम्हारे ठोकरों

से बहुत कुछ सीख जाती हूँ मैं।

गिर जाती हूं मगर फिर से

संभल जाती हूँ मैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract