स्त्रियाँ
स्त्रियाँ
स्त्रियाँ कभी कमजोर नहीं होती..
वो तो बस प्रेम में झुक जाती है।
अपने जड़ की मजबूती के लिए
फलों की चिंता में झुक जाती है।
उसे कमजोर समझने की भूल ही
उसे मजबूत बनाने की वजह है।
अपने वजूद के निशान को मिटा
वो सबके साथ खड़ी नजर आती है।
स्त्रियों की ताकत के कारण ही
उसे दबाया और सताया जाता है।
वो प्रकृति के हर ऱंग में दिख जाती है।
स्त्री पुरूष की रक्षा को, करती है व्रत
सौ तरह के जतन,
सौ तरह के उपाय।
स्त्री भूल जाती है, अपना रक्षा-कवच,
वो हर धागे में बांधती है, सौ मन्नतें,
पर एक धागा खुद के लिए बांधना
भूल जाती है।
अक्सर वो भूल जाती है,
अपने अस्तित्व के हर हिस्से को
खुद के लिए जीना, खुद की पसंद
झुकी हुई स्त्रियाँ पसंद की जाती है।
सीधी होने का तमगा लिए जीती वो,
जो हर पल उसके गले में कसता है।
उसे याद दिलाता है कि और झुकना है।
जब तक की उसका दम घुट न जाए।
ये झुकी हुई स्त्रियाँ मरी हुई ही होती है,
खुद को मार जीती रहती सभी कै लिए।
स्त्रियाँ कभी कमजोर नहीं होती..
वो तो बस प्रेम में झुक जाती है।
