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Soni Kedia

Abstract

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Soni Kedia

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रिश्ते अजीब से

रिश्ते अजीब से

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न समझ आते हैं

न समझा पाते हैं

कभी भीड़ मे आते तो

कभी तन्हाइयों मे गुनगुनाते


चुपचाप ही खुद को कहे जाते

अंदर ही अंदर बस शोर मचाते

कभी अपने पास आ जाते तो

कभी खुद को ही छिपाते


मन को बस भाते 

पर पास नहीं आते

क्यूँ कभी समझ नहीं पाते

होते है कुछ रिश्ते अजीब से

होते हैं कुछ रिश्ते अनकहे से।


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