शिकायतों को फेंक आया हूं एक दिन मैं कचरे के ढेर में शिकायतों को फेंक आया हूं एक दिन मैं कचरे के ढेर में
न जाने रोज कौन सूरज धर देता हैं ! मेरे मोहल्ले में एक बालक रहता है। न जाने रोज कौन सूरज धर देता हैं ! मेरे मोहल्ले में एक बालक रहता है।
यूं ही नहीं डगमगा रहे हैं कदम हमारे, कुछ तो खतायें तुमसे भी हुई होगी। यूं ही नहीं डगमगा रहे हैं कदम हमारे, कुछ तो खतायें तुमसे भी हुई होगी।
मगर, मगर तुम भूल गये कि रंग बदलना तो फितरत है इंसान की। मगर, मगर तुम भूल गये कि रंग बदलना तो फितरत है इंसान की।
कोई फर्क नहीं कर पाएगा, अंदर बाहर सब रंगों रंग हो जाएगा। कोई फर्क नहीं कर पाएगा, अंदर बाहर सब रंगों रंग हो जाएगा।
प्यार बांटती घर में इतना खुद को बुजुर्ग बतलाती है। प्यार बांटती घर में इतना खुद को बुजुर्ग बतलाती है।