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Diksha DG

Abstract

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Diksha DG

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एक शहर है तुम्हारे अन्दर,

जहाँ तुम आज कल

रहते नहीं हो,

सुना है,


एक शहर है तुम्हारे अन्दर,

जहाँ तुम आज कल रहते नहीं हो

बहुत कुछ है दिल और दिमाग के

दरमियान औरों की छोड़ो,


तुम तो खुद से भी कहते नही हो

वो शहर जो बेमूल दे दिया था तुमने,

वो शहर जो बेमूल दे दिया था तुमने,

तमने सोचा था की ये

तो देन है भगवान की,


मगर, मगर

तुम भूल गये कि रंग

बदलना तो फितरत है इंसान की।


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