STORYMIRROR

swati sharma

Tragedy

1  

swati sharma

Tragedy

बेइंतहा प्यार

बेइंतहा प्यार

1 min
325

बेइंतहा प्यार देखा है एक अपने अंदर,

तभी तो जनाब आज इस कदर घुटता हूं

अंदर ही अंदर…

कि किसी और को ना जगह दी उसकी

तभी तोः बेहद याद करता हूं बस एक उसे ही

अंदर ही अंदर।


शिकायतों को फेंक आया हूं एक दिन मैं कचरे के ढेर में

और अब दिल को साफ कर प्यार को भी ना समेट पाया हूं

फिर भी प्यार को भी रब बनाया हूं

अंदर ही अंदर

बेइंतहा प्यार देखा है बस एक अपने अंदर ही अंदर।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy