बेइंतहा प्यार
बेइंतहा प्यार
बेइंतहा प्यार देखा है एक अपने अंदर,
तभी तो जनाब आज इस कदर घुटता हूं
अंदर ही अंदर…
कि किसी और को ना जगह दी उसकी
तभी तोः बेहद याद करता हूं बस एक उसे ही
अंदर ही अंदर।
शिकायतों को फेंक आया हूं एक दिन मैं कचरे के ढेर में
और अब दिल को साफ कर प्यार को भी ना समेट पाया हूं
फिर भी प्यार को भी रब बनाया हूं
अंदर ही अंदर
बेइंतहा प्यार देखा है बस एक अपने अंदर ही अंदर।
