STORYMIRROR

swati sharma

Abstract

3  

swati sharma

Abstract

सुंदर सा चेहरा

सुंदर सा चेहरा

2 mins
1.2K

तुम एक सुंदर चेहरे से हो,

जिसकी सुंदरता के लिए सूरज खुद को जलाता है

उस रोशनी से तुम रात के अंधेरे को मिटा तो नहीं पाते हो,

पर सबको ये एहसास दिलाते हो कि रातों को सुंदर बना रहे हो, 

साथ मिल जाता है दूर दराज के सितारों का,

जो सूरज के डर से दिन में तो दिखाई नहीं देते पर उसके जाते ही टिमटिमाने लगते है


तुम हो भी कितने मनमौजी,

कभी आधे आते हो, कभी पूरे और कभी तो आते ही नहीं हो 

और लोग तुम्हारे इस अंदाज़ को भी मनाने लगते है,

कभी ईद का चांद कहते है‌, तो कभी पूर्णिमा का, कभी तीज का तो कभी अमावस का


तुम बस एहसास दिलाते हो कि इतने अंधेरे में भी रौशन कर रहे हो इस जहान को

तुम शीतलता भी नहीं देते,

वो तो बस सूरज के ना होने से ठंडक का एहसास है

और बाकी तो बस कुछ प्रेमियों की इक-दूजे को लुभाने की तरकीबें है जिसने तुम्हें इतना महत्त्वपूर्ण कर दिया है

उधार में जीकर खुश रहना तो कोई तुमसे सीखे


वहीं सूरज सब जग को रौशन करता है,

इतना रौशन की सबको लगता है कि अंधेरा तो था ही नहीं

वो गर्माहट देता है 

जिससे ये सारा संसार चलता है, 

ये प्रकृति फलती फूलती है, 

जल बाष्प बनकर बादल बनता और वर्षा बनकर बरसता है

सब भुला दिया जाता है 

याद रखी जाती है तो बस उसकी गर्माहट के अधिक हो जाने की चुभन

और उसी की आड़ में अपना सुंदर चेहरा दिखाकर तुम बन जाते हो सबके प्रिय।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract