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हत्यारे

हत्यारे

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सिर्फ वो नहीं होते जो

हत्या करते हैं।

वो लोग भी होते हैं,

जो जीवित लोगों के

होंठों की हँसी छीन लेते हैं।

जीने का मकसद छीन लेते हैं।


और कभी समझते भी नहीं,

न ही कोशिश करते हैं

समझने की,

हत्यारे ही होते हैं

ऐसे लोग जो मासूम से

मासूमियत छीन लेते हैं।


बुढ़ापे से उसकी लाठी छीन लेते हैं

युवकों का होश छीन उनकी

जिन्दगी बेकार करने वाले

होते हैं हत्यारों से भी घातक।


वो लोग छीन लेते हैं,

लोगों से उनके

जिन्दा रहने की वजह।

जो लोग दबा लेते हैं,

गरीबों से उनके खून-पसीने

की गाढ़ी कमाई,

उनका हक।


उन्हे कोई सजा भी नहीं होती,

वे तो बिंदास घूमते हैं।

दूसरों के सपनों को तोड़

बना लेते हैं अपना घरौंदा

सिर्फ शरीर की हत्या 

करने वाले हत्यारे नहीं 

कहलाते।


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