अस्तित्व रह जाएगा हिलकर
अस्तित्व रह जाएगा हिलकर
नदी की कथा कहो या व्यथा
अभी भी ना संभले तो
"अस्तित्व रह जाएगा हिलकर"
बरसात में जन्मी बहते पानी की
अविरल जल धारा है
हिमालय की पिघलती हुई शिराओं से
सागर तक साथ तुम्हारा है
राष्ट्र की शान हो तुम
ईश्वर का वरदान हो तुम
गंगा जमुना कृष्णा कावेरी सतलुज
ब्रह्मपुत्र
अनेकता में एकता की पहचान हो तुम
ईश्वर का वरदान हो
तुम पवित्रता और मान हो तुम
चंचल चंचल लहराती
कभी बलखाती अठखेलियां खाती
जब चलती हो तुम
खेतों को लहराती मुसाफिरों को
मीठा जल पिलाती हो तुम
मैंने कई बदलाव देखे हैं तुम में
युवा प्रौढ़ और वृद्ध यह सभी
अवस्थाओं में स्वयं को बहाती हो तुम
जीवन को निरंतर चलने का
संदेश पहुंच आती हो तुम
बहता पानी समझकर भूल मत करना
कभी अपना रौद्र रूप भी दिखाती हो तुम
बाढ़ तबाही मचाती हो तुम
समतल को दलदल बनाती हो तुम
तो कभी तेज गर्मियों के मौसम में
सुख भी जाती हो तुम
और बरसात में निश्चल बहती जाती हो तुम
अब दूषित कर डाला है सब ने मिलकर
अगर अभी भी न समझे तो मनुष्य का
अस्तित्व रह जाएगा हिलकर।
