गीत
गीत
तुम्हें भाव अपने दिखाना न आया,
कभी प्यार के गीत गाना न आया।
तुम्हें एक पाती कभी जो लिखी थी,
मुलाकात की बात उसमें कही थी,
कि दस्तूर मुझको निभाना न आया
तुम्हीं से कहूँ क्या बताना न आया।
कभी प्यार के गीत
छिपाते रहे राज हम आपसे जो,
शरारत निगाहें कि करने लगी थीं
नजर से हमें क्यों छुपाना न आया
कभी पास अपने बुलाना न आया।
कभी प्यार के गीत
नजर जो उठी आपकी इस तरह से
जमाने की' बातें सताने लगी थीं।
जहाँ हम बसायें धवल चाँदनी में
सपन क्यों हमें ये सजाना न आया।
कभी प्यार के गीत
कहानी हमारी अधूरी रही थी,
तड़प आज भी वो सताती रही है,
उलझती रही डोर मन की सदा जो,
अहम को हमें क्यों मिटाना न आया।
कभी प्यार के गीत।