STORYMIRROR

कल्पना रामानी

Tragedy

4  

कल्पना रामानी

Tragedy

एक रोटी के लिए

एक रोटी के लिए

1 min
270

रात दिन जो एक करते, एक रोटी के लिए

क्यों भला वे ही तरसते, एक रोटी के लिए।


अन्न दाता देश के ये, हल चलाते हैं सदा

फिर भी गिरवी खेत रखते, एक रोटी के लिए।   


खून है सस्ता मगर, महँगी बहुत हैं रोटियाँ

पेट कटते अंग बिकते, एक रोटी के लिए।


जो गए सपने सजाकर, गाँव के राजा शहर

बन कुली सिर बोझ धरते, एक रोटी के लिए।


दीन बचपन रोटियों को, गर्द में है ढूँढता

गर्द पर ही दिन गुजरते, एक रोटी के लिए।


पूछते हैं लोग उनसे, क्यों नहीं अक्षर पढ़ा

भूख से जो गीत गढ़ते, एक रोटी के लिए।

 

आज यदि हावी न होती, भूख अपने देश पर

लोग क्यों परदेस बसते, एक रोटी के लिए।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy