STORYMIRROR

Rashi Saxena

Tragedy

4  

Rashi Saxena

Tragedy

दुविधा

दुविधा

1 min
316

स्त्री मन की पुरानी गाथा 

दुविधा यह की कहते 

सब उससे अपने मन की 

हर छोटी बड़ी कथा

पर कब सुनता कोई 

उसकी मन की व्यथा

खुद से कहती मन में रोती

नीर भरे नयनों से न जाने 

कितनी रातें सोती 

फिर सुबह होती वो 

रहती सबके आगे पीछे तथा 

ढोती सबके काज 

मिल जाए कोई तोता उसको

जो सुने उसकी बात 

खोल पाए वो अपने मन की

परसों पुरानी हर गाँठ 

दे उसकी उलझनों का

तानों रहित जवाब।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy