माँ के नाम मेरा पैगाम
माँ के नाम मेरा पैगाम


माँ के नाम कहाँ काफी साल का एक दिन,
जिसने बरसों मेरे लिए दिन और रात नहीं देखे।
क्या सहेज पायेगी वो मेरा दिया एक भी गुलाब ,
मेरे बचपन के टोपे-जुराब आजतक नहीं फेके।
जो ले जाऊँ उसके वास्ते कुछ मीठा या नमकीन,
लौटाएगी अचार बड़ी मुरब्बे संग दुआएं देके।
कहती थी हमेशा मुझे अपने आँगन की चिड़िया,
माँ की मुस्कान बिन मेरे लिए सुनसान है मायके।
गिनु कैसे सफ़ेद बाल गिरते दांत और झुर्रियां माँ तेरी,
पढ़ी जिसने मेरी हर उदासी माथे की सिलवटे गिनके।
पूछेगी कीमत जो दूँ उसे तोहफे में साड़ी या सामान ,
आज उसे देने लायी हूँ वक़्त अपना कीमती लेके।
माँ के नाम कहाँ काफी साल का एक दिन,
जिसने बरसों मेरे लिए दिन और रात नहीं देखे।