बिरवे पर रोशन दिया मां
बिरवे पर रोशन दिया मां
सुंदर सरल सरस मुस्काती मां
सूती साड़ी बिना प्रसाधन शोभित मां
कुछ ऊँची कुछ लिपटी साड़ी
सादी चोटी में छा जाती मां
हाथों में चूड़ी, माथे पर बिंदी हरदम
पांव में बिछिया सदा सजाती मां
इत्र फुलेल न मंहगा गहना
अपनेपन की सुगंध से महकती मां
लड्डू, मठरी और गुझिया खूब बनाती
और खिलाकर खुद ही खुश हो जाती मां
स्वेटर टोपे मोजे बुनतीं
सरदी को गरमाती यां
बच्चों की पुस्तक कपड़े जूते पहले
साड़ी में फॉल लगाती मां
गुड़िया की शादी के कपड़े सिलती
छोटी पूरी, हलुआ बना बच्चों को खुश करती मां
तपे कभी बुखार से बदन जो मेरा
रात रात भर ठंडी पट्टी सर पर रखती मां
अव्वल आएं दर्जे में तो
खुशियां खूब मनाती मां
कम नम्बर पर डांट से बचाएं
हाथ फेर, आशा नई जगाती मां
लगता जैसे घर के लिए ही जीतीं
मानो सांस सांस गिरवी रख देती मां
सबको रखती हर मन्नत में
बिरवे पर रोशन दिया है मां।
