वर्किंग माँ
वर्किंग माँ
स्कूल से घर लौटने पर
उसे दरवाजे पर न पाकर,
जब तुमने कहा
जब भी कभी कहीं से घर आऊं
तुम घर पर ही मिला करो न माँ,
उस दिन से वो भागती-हाँफती
बाजार हाट कर सब्जी-भाजी
सौदा राशन ला सारे काम निपटाती
तुम्हें घर के दरवाजे पर
तुम्हारी बाट जोहती ही मिली !
उसने बड़े चाव से
एक सलवार सूट सिलवाया
तुमने देख कर मुंह बिचकाया,
मनुहार से गलबहियाँ कर
गाल पर मीठी पुच्ची दे
फरमान सुनाया
माँ तुम तो बस साड़ी में ही अच्छी लगती हो,
और उसने पूरी उम्र साड़ियों में उलझ कर
हँसते हँसते काट ली।
उसने घुईयां की सब्जी
बड़े चाव से बनाई कि
बचपन से वो खूब खाती
तुमने जब कहा मुझे नहीं भाती,
उसकी जीभ ने गुईयां का स्वाद
बड़ी ही बेरहमी से भुला डाला।
तुमने जब भी कभी
सुबह जल्दी उठा देने को कहा,
उसने पूरी रात आँखों में काट
हमेशा अलार्म को बजने से
पहले ही बंद किया।
उसने कहा अब घुटनों से
चला नहीं जाता
तुमने कहा कहाँ माँ ?
तुम तो झूठ बोलती हो,
सही तो चलती हो ,
उसने फिर कभी सच नहीं कहा
और तुम्हारे सच का मान रखने
चलते हाथ-पैर ही दुनिया छोड़ गई।
तुमने उससे जो भी कहा
उसने वो सब सहर्ष सहा !
और तुम कहते हो कि
ड्रैसकोड, पंक्चुएलिटी और डैडिकेशन
केवल वर्किंग वुमैन ही फालो करती है..।
