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Rashi Saxena

Abstract

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Rashi Saxena

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बौराती सी मां

बौराती सी मां

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छुट्टियों में बच्चों के 

आने की खबर पाकर

मां बौरा सी जाती है !

साफ-सफाई की धुन में

 यहां वहां फर्नीचर से टकरा 

घायल हो जाती है


 सच में मां बौरा सी जाती है! 

चादर, तकिए, रजाई, तौलिए

तहाकर रखने में मगन

भूखी-प्यासी, रहकर

पूरा घर सजाती है


सच में मां बौरा सी जाती है!

अचार, मुरब्बे, चटनी, पापड़

मर्तबान में सहेजती अक्सर

धूप-छांव के फेर में पड़कर

 कुछ मुरझा सी जाती है


 सच में मां बौरा सी जाती है ! 

हरदिन नया पकवान बना

चखकर, मन ही मन 

इठला सी जाती है

सच में मां बौरा सी जाती है ! 


तय दिन की बाट जोहती

घड़ी की धीमी चाल देखकर

कुछ उकता सी जाती है

सच में मां बौरा सी जाती है ! 


मुहल्ले भर को बच्चों के आने की

 खबर सुनाती ,चलता-फिरता 

एक अखबार बन जाती है ! 

सच में मां बौरा सी जाती है ! 


बाद जाने के उनके फिर, 

 सूने पड़े कमरों में

 बच्चों की गूंजती हंसी और किस्से 

मन ही मन दोहराती जाती है, 

 सच में मां बौरा सी जाती है !


हमें भी हरबार 

घर जाने पर मिलती 

बौराती सी मां

हरबार पुराने किस्से 

दोहराती सी मां।


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