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कल्पना रामानी

Classics

5.0  

कल्पना रामानी

Classics

खिल उठा गुलशन

खिल उठा गुलशन

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खिल उठा गुलशन, गुलों में जान आई।

साल नूतन दे रहा, सबको बधाई।


कह रहीं देखो, नवेली सूर्य किरणें

अब वरो आगत, विगत को दो विदाई।

 

साज़ ने संगीत छेड़ा, गीत झूमे

मन हुआ चन्दन, गज़ल भी गुनगुनाई।


जिन समीकरणों में उलझा साल बीता

शुभ घड़ी सरलीकरण की, उनके आई।


स्वत्व अपने हाकिमों से, कर लें हासिल

और जनता के हितों हित, हो लड़ाई। 


हो न बैरी अब बरी, सुन लो सपूतो

मौत के पिंजड़े में तड़पें, आततायी।

 

कर बढ़ाकर नष्ट वे, अवरोध कर दें  

प्रगति-पथ पर जिनसे हमने, चोट खाई।


साल नव अर्पित उन्हें हो, आज मित्रों

भाग्य की ठोकर जिन्होंने, कल थी खाई।


जीत का सेहरा बँधे, हर हार के सिर 

वर्ष नूतन की यही, असली कमाई।


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