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सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”

Tragedy

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सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”

Tragedy

तृषित उर की ये अगिन

तृषित उर की ये अगिन

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तृषित उर की ये अगिन

बरसे अँखियों से निर्झर नलिन

ये कैसा उपहार मिला मुझको, 

बनी वो हर वाणी कहानी।


अँखियों के अँखियों से लड़ने से

लहक उठी जैसी चिंगारी

चरागों की बाती-सी जलती रहती

पल – पल पावन प्रीति हमारी

सुधि में मेरी जाग रही है, 

वही अभिलाषा पुरानी। 


दिन हो गये चुप-चुप से गुमसुम

भर निशिता टहले उदासी

तकती अँखियां निविड़ अँधेरे

अनमिख घायल प्यासी-प्यासी

कर बैठी अनाड़ीपन में आँखें नादानी। 


पुण्य प्रत्युष की अंतिम प्रत्याशा

नयनवारि को ढरकाती रहती

विरह – वेदना की अकुलाहट

निश – दिन तुम्हें बुलाती रहती

भव से उत्ताप नहीं करता, 

अंतस् मेरा अभिमानी। 




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