करोगे ही क्या
करोगे ही क्या
जब मंजिल का पता ही नही
तो रास्तो पर चलकर करोगे ही क्या
जब घर मे अंघेरा हो
तो हर मंदिरों मे दीप जलाकर करोगे ही क्या
जब हकीकत से दूर भागना ही था
तो आखो से ख्वाब देखकर करोगे ही क्या
जब हर बात पर आसू बहाना ही था
तो समय के मलहम का करोगे ही क्या
जब कल को ही याद करते रहना था
तो आज मे जी कर करोगे ही क्या
जब तकदीर पर आँसू बहाना ही है
तो अपने हाथों से कुछ बनाकर करोगे ही क्या।
