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सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”

Tragedy

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सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”

Tragedy

आजकल मैं कैसे जाऊँ

आजकल मैं कैसे जाऊँ

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आज कल मैं कैसे जाऊँ

शहर तुम्हारे कैसे मैं जाऊँ

आती याद मुझे वो सब बातें

गुजरा था साथ तुम्हारे, 

कभी गली-चौबारे सब बेजान हुई।


क्षण भर को थम तो जाओ

श्वांसें उधड़ी-उधड़ी थम तो ले

थोड़ी-सी माँगी थी छाया अलकों की

भर अँजुलि में धूप दिये इस याचक को

छितरा से गये संकल्प हमारे, 

बंदी चिर-मुस्कान हुई। 


अनु अपेक्षित आकुल प्राणों में

माँगी छाया अलकों वाली

परन्तु गाहती पिपासाओं को

पर मिला न इक ठौर इस बेगाने को

गये थे हम भूल आँसुओं को, 

उनसे फिर पहचान हुई। 


हालातों से प्रीति बाँध लूँ

इसमें ही हिय की मजबूरी है

जग के झूठे संबंधों से

बड़ी अच्छी अपनी दूरी है

घातों को सहते – सहते, 

अब हर पीड़ा बहुत आसान हुई।


शहर तुम्हारे कैसे मैं जाऊँ

आती याद मुझे वो सब बातें

गुजरा था साथ तुम्हारे, 

कभी गली-चौबारे सब बेजान हुई।


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