किसका इंतजार करती जिंदगी है
किसका इंतजार करती जिंदगी है
रोज किसी ना किसी का इंतज़ार करती ये जिंदगानी है
वो जो खुद को बस कलम की दीवानी बताती है।।
हमने देखा हे ज़ख्म पा कलम से बतियाती वो
ज़ख़्म सुन उसके, उसको ही कलम सजाती है।।
इतने बरसों से देख रहे हम सब वैसा का वैसा ही है
सोचते क्यों खुशियां उसके दर दस्तक न दे जाती है।।
रिश्तों के बंधन नहीं , चाहे उससे कोई भी मेरे
फिर भी ना जाने कैसा रिश्ता कलम निभाती है।।
हर पल उसकी खुशियों के लिए हम सजदे करते
खुशी मिलेगी उसे जो इंसानियत महत्वपूर्ण बताती है।।
