हँसनी मैं प्यासा-प्यासा
हँसनी मैं प्यासा-प्यासा
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हँसनी मैं प्यासा-प्यासा
तीव्र बाणों से बेधित पर मेरे
पर न फूटी आह प्राणों से
वेदनायें किसको पुकारती
समझे कौन दुख की परिभाषा।
अबद्ध विचरते टहले भुवन में
परवाजे कभी उन्मुक्त गगन में
मीठी चाँदनी को पाने की
प्यासे हृदय में लिये पिपासा।
घायल मन निर्झर झरता जल
घुला नयनों में भीगा काजल
बिखर गया श्वांसों के स्वर से
मंद – मंद मन का धुँआ – सा।
अश्रुजल पीती मेरी अभिलाषा
चेतन-सुधा की हिलोरों में
हँसनी मैं प्यासा – प्यासा।