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Dr.Pratik Prabhakar

Tragedy

4  

Dr.Pratik Prabhakar

Tragedy

तेरा नाता

तेरा नाता

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मैं हूं नदी, कहूं आत्मकथा भ्राता

क्या नहीं मेरी व्यथा से तेरा नाता ?


 डूबकर इतराते तुम मुझ में सब

आते स्नान करते तुम जब जब

इतनी गंदगी कितना नाला कचरा

इंसान है रहता ही मुझ में बहता

क्या नहीं मेरी व्यथा से तेरा नाता 


मैं तो निर्मल थी, कंचन सी थी 

मैं ने ही तुम्हें ही जनधन दी थी

पर तुम निकले कपटी ही मानव 

तुम धोखेबाज, ऋणी, मैं दाता

क्या नहीं मेरी व्यथा से तेरा नाता ?



पशुओं को नहलाते, नाली बहाते

नदी स्वच्छ हो बस सपने दिखाते

हयाद रखो कैसे मरोगे तुम सब

जब तोड़ूँ में तुम सब से नाता।

क्या नहीं मेरी व्यथा से तेरा नाता ?

मैं हूं नदी, कहूं आत्मकथा भ्राता।


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