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Sunita kashyap

Tragedy

5.0  

Sunita kashyap

Tragedy

औरत

औरत

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टूटती-बिखरती और जूझती रही,

कुछ इस तरह औरत जीती रही।

माँ-बहन,पत्नी सब रिश्तों में,

बंधकर सबकी सुनती रही,

कुछ इस तरह औरत जीती रही।


उसके लिए थी लाखों बन्दिशें

और थी यातनाएँ 

अब ये नियति थी या विडंबना,

औरत सदियों से केवल सुनती रही,

कुछ इस तरह औरत जीती रही।


राजा ने कहा जहर पियो,

औरत मीरा हो गई।

प्रभु राम ने कहा निकल जाओ,

औरत सीता हो गई।

ऋषि ने कहा पत्थर बनो,

औरत अहिल्या हो गई।

चिता से निकली चीख,

औरत सती हो गई।

की ना कोई फरियाद चाहे वह घुटती रही,

कुछ इस तरह औरत जीती रही।


गर्भ से निकली बेटी की चीख,

औरत भ्रुण हत्या हो गई।

दहेज के लिए जिंदा जलाया आग में,

औरत अबला नारी हो गई,

बूढा़पे में छोड़ दी गई वृद्धाआश्रम में,

औरत बेचारी माँ हो गई,

सिले रहे होंठ, अटके रहे शब्द,

अपने मन की इच्छाओं को हमेशा दबाती रही

कुछ इस तरह औरत जीती रही।


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