सफ़र
सफ़र
मदमयी सी फ़िज़ा है
सूरमयी सी घटा है
अंबर में है हमनशीं
ख़्वाबों की जन्नत में कहाँ।
मंज़र ऐसा तो कहीं
बहती ठंडी इस हवा में
रहती महकें हैं यादों की
राही के एहसास की
जग कारवाँ मेरा।
जग कारवाँ मेरा
सफ़र में, सफ़र में
है दिल के जो ख़ास
हर सपना अब पास
नज़र के सफ़र में।
मिट्टी के शहर गीतों की लहर
लफ़्ज़ों की गली शायर की हुई
हर बस्ती में मेरी हस्ती में है
गूँजता इक गाना।
हर लम्हे की अब ख्वाहिश
है इक धुन नयी।