अहद ए वफ़ा
अहद ए वफ़ा
कई गिरह ए गुल कबा, याद ए मुहब्बत में लगाए थे मैंने
तू क्या जाने अहद ए वफ़ा ,जो ख्वाबों में सजाए थे मैंने
अंदाज़ ए अश्क भी अपने आह ए दिल में छुपाए बैठे है
दाग ए आब ए अश्क 'हसन' दामन में अपने दबाए बैठे है
किस्सा ए उल्फत हुई बैगना , आने से किसी गैर के यहां
'हसन' फसाना ए मुहब्बत क्या कहूं जो छुपाए न छुपे याँ
कश्ती ए दिल भी गम ए मज़दार में है शिकस्त ओ रेख़्त
ना खुदा भी डूब गया साहिल ओ शह सवार के साथ
नज़र क्यूं नहीं आता मुद्दत से पेश ए नज़र मेरे कोई
क्यूं छुपा जाता है इक मुद्दत से ज़ेर ए नज़र मेरे कोई
शिकन दर शिकन निकले वादा ए शिकन कई लोग
वादा ए वफ़ा में नहीं मिलते फरहाद कोहकन कई लोग।