सर्द शाम
सर्द शाम
शाम के एकाकीपन में होती है,
तेरी यादों की दस्तक
जो करती हैं गुफ़्तगु मुझसे
अक्सर रात रात भर.
सुबह फिर से इक धूप का टुकड़ा
थाम कर हाथ उजाले का
कर देता है दूर मुझसे लेकिन
अब...अब तो सर्द है मौसम
कोहरे सी लिपटी तेरी यादें
हरपल साथ ही रहती है...
आजकल सूरज कम ही निकलता है...
और आज तो हवा मे ठंडक भी है।