दो पल की उम्मीदें
दो पल की उम्मीदें

1 min

309
दिल की इस ज़मीन पर खिलता कुछ नहीं
करले सौदा तू यहाँ मिलता कुछ नहीं
दो पल की उम्मीदों पे ठहरता है ज़माना
फिर है वही समां किस्सा यह है वही पुराना
हिलती नहीं क़िस्मत की लकीर
सुनती नही ज़िंदगी कुछ तेरी
क्यूँ हर दुआ अब है बेअसर
क्यूँ वक़्त भी अब है बेसब्र
कैसी यह कमी है मिटती जो नहीं
दिल को मंज़ूर है अब जो मिले वो सही
दो पल की उम्मीदों पे ठहरता है ज़माना
फिर है वही समां किस्सा यह है वही पुराना
मिलती नही सबको मंज़िल
ख़्वाबों के हैं यहाँ सभी क़ातिल
क्यूँ हर दुआ अब है बेअसर
क्यूँ वक़्त भी अब है बेसब्र