आबाद
आबाद


क्यूँ कहता है मुझसे यह जहान
नादान ना देख तू इतना ऊँचा
आसान नहीं है पाना वो मुक़ाम
बन के ग़ुलाम तुझ को रहना यहाँ
यह बातें मुझ को क्यूँ सताती हैं
मेरी ख़ामोशी क्यूँ रुलाती है
आबाद हूँ मैं इस बर्बादी में
ग़ुलाम हूँ मैं इस आज़ादी में
कह रहा है मुझ से यह आसमान
उड़ कर तुझ को है आना यहाँ
क्यूँ रोता है जाने तू बेवजह
मुस्तार वक़्त में ना हो लापता
पूछे ना सूरज किसी को भी
चमकना है उसको सदा यूँही
फिर क्यूँ मैं रुका हूँ सुन के दुनिया की
अब उड़ते रहना है इस आसमान की ओर