नाराज़गी
नाराज़गी


नाराज़गी तुमसे मेरी
पिछले गिले हम भी भूले नहीं
सामने तुम आए हो
जाने क्यूँ घबराए हो।
कह दो बातें सुनना चाहे
दिल यह जो मेरा
कैसी यह ख़ामोशी है
बातों ही बातों में भी
कह दो बातें सुनना चाहे।
दिल यह जो मेरा
बेरुख़ी क्यूँ तुझमें रही
दीवानगी मुझको मिली नहीं
कैसी दिल की बातें हैं।
जाने कैसी रातें हैं
मिलती नहीं सौग़ातें हैं
मिलती नहीं मुलाक़ातें हैं
बेताबी क्यूँ बढ़ती रही
बढ़ती रही तुमसे नाराज़गी।